Article 370: इतिहास हुआ आर्टिकल 370, 4 साल बाद मोदी सरकार के फैसले पर लगी ‘सुप्रीम’ मुहर (Latest News)

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने की प्रक्रिया को सही करार दिया है। सोमवार को फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।

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Article 370

Article 370: इतिहास हुआ आर्टिकल 370, 4 साल बाद मोदी सरकार के फैसले पर लगी 'सुप्रीम' मुहर (Latest News)
Article 370: इतिहास हुआ आर्टिकल 370, 4 साल बाद मोदी सरकार के फैसले पर लगी ‘सुप्रीम’ मुहर (Latest News)

संविधान सभा की सिफारिशें राष्ट्रपति पर बाध्य नहीं थीं

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 के अस्तित्व समाप्त होने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती हैं।

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फैसले में कहा गया कि अदालत राष्ट्रपति के फैसले पर अपील पर विचार नहीं कर सकती

इस फैसले में कहा गया कि यह अदालत राष्ट्रपति के फैसले पर अपील पर विचार नहीं कर सकती कि अनुच्छेद 370 के तहत विशेष परिस्थितियां मौजूद हैं या नहीं।

संविधान पीठ ने तीन फैसले दिए

5 जजों की संविधान पीठ ने इस फैसले में तीन फैसले दिए हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ इस बेंच के मुखिया थे। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी रहे। सीजेआई, जस्टिस गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने एक फैसला दिया, जबकि जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसके कौल ने अलग-अलग फैसले लिखे।

यह सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले की एक महत्वपूर्ण घटना है जिसने अनुच्छेद 370 के समर्थन और विरोध में एक नया मोड़ प्रस्तुत किया है।

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है, जिसमें वह दिसंबर 2018 को जम्मू-कश्मीर में लागू किए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर सवाल उठाते हैं। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण पहलुओं को मध्यस्थ किया है।

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सीजेआई का दृढ़ विचार

SC ने कहा कि इसे याचिकाकर्ता द्वारा विशेष रूप से चुनौती नहीं दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा संघ के राष्ट्रपति शासन की वैधता पर खास चुनौती नहीं दी गई थी।

राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं

सीजेआई ने कहा, जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति शासन लागू होते ही राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं, जिन्हें अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति के प्रयोग की उचित वजह होनी चाहिए।

जम्मू-कश्मीर का संप्रभुता बरकरार रखना

सीजेआई ने कहा, संवैधानिक व्यवस्था ने यह संकेत नहीं दिया कि जम्मू-कश्मीर ने संप्रभुता बरकरार रखी है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इस बारीकी से बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग बन गया है।

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राष्ट्रपति की अधिसूचना का महत्व

CJI ने कहा- अनुच्छेद 370 (3) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना जारी करने की शक्ति कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के विघटन के बाद भी कायम रहती है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने यह भी उजागर किया कि अनुच्छेद 370 (3) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना जारी करने की शक्ति के बावजूद, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के विघटन के बाद भी कायम रहती है।

लद्दाख के पुनर्गठन का निर्णय

हमें यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर का UT में पुनर्गठन वैध है या नहीं। केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख के पुनर्गठन को बरकरार रखा गया है क्योंकि अनुच्छेद 3 राज्य के एक हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है: सीजेआई

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इस बात की भी स्पष्टीकरण किया कि जम्मू-कश्मीर को यूनियन टेरिटरी (UT) में पुनर्गठित करने का निर्णय वैध है, क्योंकि अनुच्छेद 3 भारतीय राज्यों के हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है।

इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के संविधानिक स्थिति पर एक महत्वपूर्ण संकेत दिया है, और इससे यह स्पष्ट होता है कि संविधान के माध्यम से किए गए संविधानिक परिवर्तनों का महत्वपूर्ण रूप से मूल्यांकन होना चाहिए।

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सीजेआई के आदेश में सवाल: क्या संसद किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकती है?

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है, जिसमें उन्होंने यह प्रश्न उठाया है कि क्या संसद किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकती है। इस फैसले के साथ ही, भारत के चुनाव आयोग को भी 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए निर्देश दिए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप, जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा।

सीजेआई के इस आदेश ने सामाजिक और सियासी दायरों में बड़ी चर्चाओं को जन्मा दिया है। इस निर्णय के पीछे का मुद्दा था कि क्या संसद किसी राज्य के स्थानीय प्रशासनिक दर्जा को रद्द करके उसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकती है।

सीजेआई के इस आदेश में उन्होंने यह भी कहा कि भारत के चुनाव आयोग को जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए 2024 तक कदम उठाना होगा। इससे जम्मू-कश्मीर को उनके स्थानीय प्रतिनिधित्व की वापसी का मार्ग मिलेगा और राज्य का दर्जा जल्द ही बहाल किया जाएगा।

इस आदेश के बाद, राज्य की सियासी स्थिति में सुधार की उम्मीद है। सीजेआई के इस फैसले ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न को उजागर किया है और यह दिखाया है कि संसद की शक्ति और उसके आदेशों का महत्व कितना होता है।

इस आदेश के साथ ही, जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए भी एक नई उम्मीद का संकेत है, जिन्होंने अपने स्थानीय प्रतिनिधित्व को खो दिया था। अब वे फिर से अपने चुने गए प्रतिनिधित्व को प्राप्त करने का मौका पा सकते हैं और राज्य के विकास में भागीदारी कर सकते हैं।

सीजेआई के इस आदेश के बाद, संसद के और भी महत्वपूर्ण फैसलों की आसानी से संभावना है, जिनमें राज्यों के संघटन और पुनर्गठन के मुद्दे शामिल हो सकते हैं।

इसके परिणामस्वरूप, सीजेआई के इस आदेश का महत्वपूर्ण प्रभाव देश की राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में दिखने वाला है, और यह दिखाता है कि भारतीय संविधान के माध्यम से लिए गए फैसलों का महत्व कैसे होता है।

इस आदेश के परिणामस्वरूप, सीजेआई ने एक महत्वपूर्ण सवाल को उजागर किया है और भारतीय राजनीति में एक नई दिशा की ओर कदम बढ़ाया है। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए भी यह एक नई आशा का संकेत है, जिन्होंने अपने स्थानीय प्रतिनिधित्व को वापस पाने का सपना देखा था।

सीजेआई के इस आदेश ने यह स्पष्ट किया है कि भारतीय संविधान और संसद की प्राधिकृति न केवल देश के प्रशासनिक संरचना को सुधार सकती है, बल्कि यह देश के लोगों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है।

कश्मीर: विद्रोह के परिणामस्वरूप आबादी का पलायन और सेना की आवश्यकता

कश्मीर, भारत के उत्तरी प्रांतों में स्थित एक सुंदर स्थल है, जिसकी सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर दुनिया भर में मशहूर हैं। हालांकि यहां का सौंदर्य और धरोहर बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कुछ दशकों से यहां के राजनीतिक संकटों ने इस क्षेत्र को एक संवाद का केंद्र बना दिया है।

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विद्रोह के परिणामस्वरूप आबादी का पलायन

कश्मीर के इतिहास में 2019 में धारा 370 को हटाने के बाद हुए घटनाक्रमों के परिणामस्वरूप, एक बड़ा विद्रोह हुआ जिसने इस क्षेत्र के एक हिस्से को आबादी के पलायन की ओर बढ़ा दिया। इस विद्रोह के कारण कई लोगों ने अपने घरों को छोड़ दिया और अन्य सुरक्षित स्थानों की तलाश में बढ़ गए। यह दुखद है कि कश्मीर के वासियों को अपने घरों से दूर जाना पड़ा, लेकिन इसके पीछे विशेष गतिविधियों और सुरक्षा की आवश्यकता के बारे में सोचने के लिए कई कारण थे।

स्थिति की गंभीरता

कश्मीर में विद्रोह के बाद, स्थिति काफी गंभीर हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय सेना को इस क्षेत्र में अधिक संख्या में तैनात करना पड़ा और सुरक्षा की व्यवस्था को मजबूत करना पड़ा। स्थिति में सुधार करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन यह अब भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

सेना की आवश्यकता

विद्रोह के परिणामस्वरूप, कश्मीर में सेना की आवश्यकता पड़ी और भारतीय सुरक्षा बलों को इस क्षेत्र में अधिक संख्या में तैनात करना पड़ा। सेना के तैनात होने से सुरक्षा में सुधार हुआ है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि राज्य के लोगों ने इसके लिए भारी कीमत चुकाई हैं। विद्रोह के परिणामस्वरूप, लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी आघात से गुजरना पड़ा है, और इसका राज्य के लोगों पर गहरा प्रभाव हुआ है।

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विधिक संशोधन का महत्व

इस संवाद के बीच, जस्टिस संजीव खन्ना ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा की है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 367 में किया गया संशोधन कानून की दृष्टि से गलत था, लेकिन वही उद्देश्य 370(3) के जरिए प्राप्त किया गया और इसलिए CO 273 को वैध माना जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि कश्मीर के संविधान में संशोधन का महत्व बहुत बड़ा है और इसका गहरा प्रभाव होता है।

समापन

कश्मीर के विद्रोह और स्थिति का मामूला से समाधान निकालना मुश्किल है, लेकिन इसे सुलझाने के लिए सरकार और नागरिक समृद्धि कार्यक्रमों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। साथ ही, विधिक संशोधन के माध्यम से संविधान में सुधार करना भी महत्वपूर्ण है ताकि कश्मीर के लोगों को उनके अधिकार और स्वतंत्रता मिल सके।

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आर्टिकल 370: पक्ष-विपक्ष में दी गईं दलीलें

भारतीय संविधान के आर्टिकल 370 का परित्यागन, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों और देश के अन्य भागों के लोगों के बीच विवाद का कारण बना है। इस आर्टिकल के बारे में प्रमुख याचिकाकर्ताओं और वकीलों के बीच मूलभूत विचारधारा में विभिन्न मतभेद हैं। इस आर्टिकल को निरस्त करने के समर्थन और विरोध के पीछे की दलीलें बहुत महत्वपूर्ण हैं।

दलील 1: संविधान सभा की सिफारिश

याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि आर्टिकल 370 को निरस्त ही नहीं किया जा सकता। उनका कहना था कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश से ही राष्ट्रपति को इसे निरस्त करने का अधिकार था। संविधान सभा की यह सिफारिश 1951 से 1957 तक केवल उस अवधि के लिए थी, और इसके बाद इसे निरस्त नहीं किया जा सकता था।

दलील 2: संवैधानिक कार्रवाई की अभाव

सीनियर वकील सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चूंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल खत्म हो गया था, इसलिए 1957 के बाद इसे निरस्त करना संवैधानिक रूप से संविधान के खिलाफ है। उनका तर्क यह था कि इस आर्टिकल को परित्यागने की कोई समयसीमा नहीं थी, और इसका पालन करना चाहिए।

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दलील 3: राज्य का दर्जा स्थायी नहीं

केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि गृह मंत्री ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पेश करते हुए कहा था कि सही समय पर राज्य का दर्जा स्थायी नहीं होगा। इससे स्पष्ट होता है कि आर्टिकल 370 का परित्यागन सिर्फ एक समय-सीमा नहीं है बल्कि यह एक नीतिक सवाल भी है।

दलील 4: समर्पण और सम्प्रभुता का माध्यम

सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आजादी के 75 साल बाद जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को एक अधिकार मिला है, जिससे वह वंचित थे। इस अधिकार के साथ, वह अब देश के अन्य लोगों के साथ मिलकर समर्पण और सम्प्रभुता का माध्यम बन सकते हैं। इससे जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को व्यापक संप्रभुता भी मिली है, जिससे वे समृद्धि की ओर बढ़ सकते हैं।

इन दलीलों के माध्यम से, आर्टिकल 370 के परित्यागन के समर्थन और विरोध के पीछे की मुद्दे को समझना महत्वपूर्ण है, और सुप्रीम कोर्ट को इन दलीलों को मध्यस्थता करके उचित निर्णय देना होगा।

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धारा 370 क्या है ? (What is Article 370?)

धारा 370, भारतीय संविधान का एक ‘अस्थायी प्रावधान’ (Temporary Provision) है, जिसके तहत जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जिसका मतलब होता है कि यहाँ पर भारतीय केंद्र सरकार को केवल रक्षा, विदेश और संचार के क्षेत्र में कानून बनाने का अधिकार होता है.

धारा 370 के महत्वपूर्ण प्रावधान (Key Provisions of Article 370)

  1. विशेष आदिकार (Special Autonomy): धारा 370 के तहत, जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष आदिकार प्राप्त होते हैं, जिससे यहाँ के लोगों को अपने राज्य के प्रशासनिक और कानूनी मामलों पर नियंत्रण रखने का अधिकार होता है.
  2. विशेष दोहरी नागरिकता (Special Dual Citizenship): जम्मू और कश्मीर में रहने वाले लोगों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है – भारतीय और कश्मीरी. इससे वे अन्य भारतीय नागरिकों से अलग होते हैं.
  3. केंद्र से अप्रूवल (Approval from the Center): जम्मू और कश्मीर में भारत के अन्य राज्यों में लागू होने वाले कानूनों को यहाँ पर लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार से अप्रूवल प्राप्त करना होता है, जिससे इस राज्य को अपनी विशेषता बनाए रखने का सुनिश्चित किया जाता है.

धारा 370 के परिणाम (Consequences of Article 370)

धारा 370 के कारण, जम्मू और कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से अलग करने वाली कई विशेषताएँ होती हैं. यह राज्य अपने स्वतंत्रता के क्षेत्र में स्वायत्तता रखता है और उसके अपने संविधान और कानून होते हैं.

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धारा 370 का इतिहास (History of Article 370)

भारतीय संविधान का धारा 370 एक महत्वपूर्ण और विवादित धारा थी, जिसने जम्मू-कश्मीर के स्थिति को विशेषत: रखा। इस लेख में, हम धारा 370 के इतिहास की खोज करेंगे, जिसने इसे एक अद्वितीय संविधानिक प्रावधान बनाया और भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण प्रसंग प्रदान किया।

धारा 370 की उत्पत्ति (Origin of Article 370):

सन् 1947 में, ब्रिटिश शासन से आजाद होने के बाद, जम्मू-कश्मीर के लिए दो मुख्य विकल्प थे – भारत या पाकिस्तान में शामिल होना। इस समय, कश्मीर क्षेत्र में आजाद सेना ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर हमला किया और कश्मीर के बड़े हिस्से को अपने कब्जे में कर लिया। इस संदर्भ में, कश्मीर के तत्कालिक महाराजा हरी सिंह ने भारतीय प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ हाथ मिलाने का निर्णय लिया। इसके परिणामस्वरूप, कश्मीर भारतीय संघ में शामिल हो गया।

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धारा 370 का प्रारूपण (Provision of Article 370):

हालांकि कश्मीर भारत में शामिल हो गया, लेकिन यह शामिली जाने वाली थी अस्थायी रूप से। सन् 1949 में, धारा 370 को लागू किया गया, जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संविधान से अलग दर्जा दिया गया। इस धारा के तहत, कश्मीर को अपना स्वयं संचालन करने का अधिकार मिला, और इसे भारतीय संघ के अनुशासन से बाहर रखा गया।

धारा 370 के परिणाम (Consequences of Article 370):

धारा 370 के परिणामस्वरूप, कश्मीर में अनुशासन, धर्म, और नागरिकता के कई मामलों में अलग निर्णय और विशेष अधिकार थे। यह धारा कश्मीर के साथ-साथ भारत सरकार के लिए एक चुनौती भी बनी, क्योंकि इसे अन्य राज्यों से अलग दर्जा देने के कारण कश्मीर में समानता का संविधानिक दर्जा नहीं था।

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धारा 370 के खत्म होने का निर्णय (Abrogation of Article 370):

सन् 2019 में, भारतीय सरकार ने धारा 370 को निरस्त करने का निर्णय लिया, जिससे कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के साथ समान संविधानिक दर्जा मिला। इसके बाद, कश्मीर में अधिकार और सामाजिक समानता के मामले में सुधार हुआ और भारत का संविधान वही सामान्य नियमों के साथ लागू होने लगा।

धारा 370 की कुछ विशेषताएं (Key Points of Article 370)

धारा 370 का परिचय (Introduction to Article 370)

  • धारा 370 के तहत चूंकि कुछ मामलों (रक्षा, विदेश एवं संचार) को छोड़कर बाकि किसी भी क्षेत्र के लिए कानून बनाने के लिए केंद्र को राज्य से अनुमति लेनी होती है, इसलिए राज्य के निवासी भी कानूनों के एक अलग समूह के तहत रहते हैं. जिनमें उन्हें अन्य भारतीयों की तुलना में अलग नागरिकता, संपत्ति का स्वामित्व और मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं.

संपत्ति की विशेषता (Property Rights)

  • धारा 370 का परिणाम यह निकलता है कि अन्य राज्य का कोई भारतीय नागरिक जम्मू और कश्मीर की सीमा के अंदर कहीं भी जमीन या सम्पत्ति नहीं खरीद सकता है.

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आपातकाल और सुप्रीम कोर्ट का प्रभाव (Emergency and Supreme Court’s Authority)

  • धारा 370 के तहत, केंद्र के पास जम्मू और कश्मीर में अन्य राज्यों की तुलना में धारा 360 के अंतर्गत आने वाले वित्तीय आपातकाल को घोषित करने की कोई शक्ति नहीं होती है.
  • जम्मू – कश्मीर में यदि युद्ध की स्थिति बनती है या वहां किसी अन्य देश द्वारा हमला कर दिया जाता है, तो ऐसे मामले में ही केंद्र सरकार को राज्य में आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार प्राप्त है. अतः केंद्र सरकार आंतरिक गडबडी या अन्य खतरे के आधार पर आपातकाल की घोषणा नहीं कर सकती है, जब तक कि यह अनुरोध पर या राज्य सरकार की सहमति से नहीं किया जाता है.

राष्ट्रीय ध्वज और नागरिकता (National Flag and Citizenship)

  • जम्मू और कश्मीर के लिए तिरंगा के अलावा एक अलग राष्ट्रीय ध्वज भी होता है, इसलिए वहां के नागरिकों को इसका सम्मान नहीं करने पर उन पर कोई अपराधिक मामला दर्ज नहीं होता है.

विधानसभा का कार्यकाल (Legislative Assembly Term)

  • जम्मू – कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल के लिए हैं. किन्तु आपको बता दें कि भारत के अन्य राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का है.

सुप्रीम कोर्ट का प्रभाव (Supreme Court’s Influence)

  • यहाँ तक कि जम्मू और कश्मीर में यदि भारत की उच्चतम न्यायालय यानि की सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई आदेश दिया जाता है, तो वहां के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे इसका पालन करें, क्योंकि उन्हें इसके लिए मान्यता नहीं दी गई है.

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विवाह और नागरिकता (Marriage and Citizenship)

  • यदि कोई जम्मू और कश्मीर की महिला जोकि एक कश्मीरी है जब वह भारत के किसी अन्य राज्य के किसी व्यक्ति से शादी कर लेती है, तो उस महिला से उसके कश्मीरी होने का अधिकार छिन जाता है.
  • इसके विपरीत अगर कोई महिला कश्मीरी है और वह पाकिस्तान में रहने वाले किसी व्यक्ति से निकाह करती है, तो उसकी कश्मीरी नागरिकता पर कोई असर नहीं होता है. और साथ ही पाकिस्तानी व्यक्ति जब कश्मीरी लड़की से शादी करते हैं, और फिर कश्मीर में आकर रहने लगता है तो उस व्यक्ति को भारतीय नागरिकता भी प्राप्त हो जाती है.

डॉ. भीमराव आंबेडकर की अमान्यता (Dr. B.R. Ambedkar’s Refusal)

  • जब इस धारा 370 का ड्राफ्ट तैयार किया जाना था, तब डॉ. भीमराव आंबेडकर को यह तैयार करने के लिए कहा गया था किन्तु उन्होंने इससे इंकार कर दिया था.

सीमाओं का प्रबंधन (Management of Borders)

  • धारा 370 के तहत, भारतीय संसद को यह अधिकार नहीं है कि वह राज्य की सीमाओं को बढ़ा सके या कम कर सकें.

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मुख्यमंत्री की पद (Office of the Chief Minister)

  • जम्मू और कश्मीर के मूल निवासी ही जम्मू – कश्मीर के मुख्यमंत्री बन सकते हैं.
  • धारा 370 एक महत्वपूर्ण कानून है जो भारतीय संघर्ष के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और जम्मू और कश्मीर के विशेषता को प्रकट करता है।

धारा 370 से मिलने वाले लाभ (Advantages)

धारा 370 के प्रावधानों से होने वाले लाभ का अध्ययन

1. अधिकारों का संरक्षण (Protection of Rights)

धारा 370 का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि एक कश्मीरी निवासी को उन अधिकारों और सुविधाओं का उपयोग करने का अधिकार होता है, जो उन्हें उनके भूमि पर प्राप्त होते हैं, और इन अधिकारों को गैर-कश्मीरी व्यक्तियों द्वारा छीना नहीं जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, कश्मीर के निवासियों को उनके स्थानीय अधिकारों का संरक्षण मिलता है।

2. प्रतिष्ठा का सम्मान (Preservation of Dignity)

जम्मू और कश्मीर को भारत में मिलाते हुए वहां के लोगों और रूलर को यह आश्वासन दिया गया था कि किसी भी कीमत पर उनकी प्रतिष्ठा का सम्मान और सुरक्षा की जाएगी। धारा 370 इस आश्वासन को मजबूत करने में मदद करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वहां के निवासियों का समाज में समान स्थान है और उनकी प्रतिष्ठा सुरक्षित है।

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3. सर्वोच्च पद की विश्वसनीयता (Credibility of Highest Office)

धारा 370 को रखने से देश के सर्वोच्च पद की विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है, क्योंकि इसका अनुशासन राष्ट्रपति के आदेश द्वारा होता है। यह उन विश्वासपात्र द्वारा सुनिश्चित करता है कि सर्वोच्च पद का चयन और कश्मीर के मामलों में न्याय की निगरानी की जाती है।

4. विश्वास की सेतु (Bridge of Trust)

धारा 370, जब राज्य और केंद्र के बीच विश्वास की कमी होती है, तो एक सेतु के रूप में कार्य कर सकता है, जिससे समस्याओं के समाधान की दिशा में मदद मिल सकती है। इससे राज्य के विकास और सुरक्षा की दिशा में साझा दृढ़ निश्चित होता है।

5. प्रतिस्पर्धा कमी (Reduced Competition)

कश्मीर को एक और फायदा यह मिलता है कि वहां कम प्रतिस्पर्धा होती है और इसके परिणामस्वरूप, वहां के नागरिकों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अधिक अवसर होते हैं। इससे स्थानीय उद्योग और व्यापार को बढ़ावा मिलता है, जिससे रोजगार की स्थिति सुधारती है।

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6. स्थानीय ब्रांड का समर्थन (Support for Local Brands)

जम्मू – कश्मीर में स्थानीय ब्रांड है जोकि अभी भी वहां चल रही है, और धारा 370 इसे समर्थन प्रदान करती है। इससे स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित किया जा सकता है और कश्मीर के विकास में योगदान किया जा सकता है।

संक्षेप (Conclusion)

धारा 370 के प्रावधान विभिन्न तरीकों से कश्मीर के निवासियों के लिए लाभकारी हैं, और इन्हें सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि यह प्रावधान सही तरीके से प्राप्त और संरक्षित रहें। इसके साथ ही, इसके समर्थन में भी योगदान करने से कश्मीर का समृद्धि और सुरक्षा में सुधार हो सकता है।

धारा 370 से होने वाली हानियाँ (Disadvantages)

1. संपत्ति और उद्योगिकता पर प्रतिबंध

धारा 370 से नुकसान यह है कि कोई भी गैर-कश्मीरी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में अपनी संपत्ति नहीं रख सकता है और वहां कोई उद्योग शुरू नहीं कर सकता है, जिससे विकास की राह में रुकावट हो रही है।

2. स्वास्थ्य और शिक्षा में कमी

इससे जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षा संस्थान बेहतर नहीं हैं, जिसके कारण वहां के नागरिकों का सही से विकास नहीं हो पा रहा है।

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3. मजदूरों की वेतन में कमी

जम्मू-कश्मीर में चपरासी के रूप में काम कर रहे लोगों को केवल 2,500 रुपये ही प्रदान किए जा रहे हैं, जो आज के समय के हिसाब से कम है।

4. नागरिकों के अधिकारों में कमी

धारा 370 के तहत, कश्मीर में आरटीआई, आरटीई और सीएजी जैसे आपराधिक अधिकार नहीं हैं।

5. व्यापारिक दक्षता में रोक

कश्मीर में बाहरी लोगों के लिए व्यापार स्थापित करना कठिन होता है।

6. धार्मिक और सामाजिक प्रतिबंध

जम्मू और कश्मीर में महिलाएँ इस्लामिक कानून, जिसे शरियत कहा जाता है, का पालन करती हैं।

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7. पंचायतों के अधिकार में कमी

कश्मीर के गांवों में पंचायतों को भी कोई अधिकार नहीं प्रदान किए गए हैं।

8. अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षिती का अभाव

जम्मू-कश्मीर में हिन्दू और सिख अल्पसंख्यकों के लिए कोई आरक्षिती नहीं है।

9. दोहरी नागरिकता का परिणाम

धारा 370 से होने वाली सबसे बड़ी हानि यह है कि कश्मीर में पाकिस्तानी नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाती है, जिससे आतंकवाद का खतरा बढ़ जाता है।

10. संविधानिक अधिकारों का अभाव

भारतीय संविधान का भाग 4, जिसमें मौलिक कर्तव्य शामिल है, जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू नहीं है, जिससे वहां के नागरिकों को महिलाओं की समाज में गरिमा बनाए रखने, गायों की सुरक्षा, और भारतीय ध्वज का सम्मान करने के लिए निर्दिष्ट कानूनी माध्यम नहीं

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आर्टिकल 35A: जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की आदि

आर्टिकल 35A और उसका महत्व

आर्टिकल 35A भारतीय संविधान का अहम हिस्सा है, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया है। इस आर्टिकल के तहत, जम्मू-कश्मीर के निवासियों को कई विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं।

नागरिकता का प्राधिकृत्य

इस अनुच्छेद के तहत, यदि कोई लड़की भारतीय नागरिक से शादी करती है, तो उसकी नागरिकता को जम्मू-कश्मीर से रद्द किया जा सकता है। इसके अलावा, कोई भी भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर में ज़मीन खरीदने के लिए पात्र नहीं है।

आपातकालीन स्तिथि की विशेषता

इस अनुच्छेद के तहत, जम्मू-कश्मीर में धारा 356 का प्रावधान लागू नहीं किया जा सकता, अपातकालीन स्थिति के दौरान भी। यहाँ तक कि पूरे देश में आपातकालीन स्थिति के बाद भी जम्मू-कश्मीर में ऐसा करने की अनुमति नहीं है।

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दोहरी नागरिकता का अधिकार

इस अनुच्छेद के परिणामस्वरूप, जम्मू-कश्मीर के निवासियों के पास दोहरी नागरिकता का अधिकार होता है, और वे अपने राष्ट्रीय ध्वज को अपने घरों में फहरा सकते हैं।

विशेष नियम और कानून

जम्मू-कश्मीर में अपने विशेष नियम और कानूनों की विशेषता है, जिसके तहत वहाँ की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि भारत का 5 साल होता है। भारतीय उच्चतम न्यायालय के नियम जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं।

नागरिकों की आजादी और समानता

जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को भारतीय राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने का आरोप, अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। इस अनुच्छेद के चलते वहाँ के निवासी भारत के साथ एक अनूठी संबंध और समानता का आनंद लेते हैं।

इस रूपरेखा के अंतर्गत, आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और यह उस राज्य की विशेषता को बनाए रखने में मदद करता है।

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35A अनुच्छेद को कब मान्य किया था?

35A अनुच्छेद को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को मंजूरी दी थी। इसके बाद, इस धारा को भारतीय संविधान में जोड़ दिया गया। इस अनुच्छेद के अनुसार, जम्मू और कश्मीर में किसी भी अन्य भारतीय राज्य के नागरिक को इस राज्य में ज़मीन खरीदने और स्थाई रूप से वहाँ बसने का अधिकार नहीं होता। इसके सारे प्रावधानों को स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है कि जम्मू और कश्मीर का अपना संविधान होता है।

जम्मू और कश्मीर का संविधान और नागरिकता

जम्मू और कश्मीर का संविधान 1956 में बनाया गया था। इसके अनुसार, जम्मू और कश्मीर की नागरिकता केवल वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जो इस राज्य में कम से कम दस साल तक रहा है, या उसके पास पहले से ही इस राज्य की नागरिकता है और उसने इस राज्य में थोड़ी सी ज़मीन खरीदी हो। जम्मू और कश्मीर में एक अलग संविधान होने के कारण, यहाँ एक देश में दो संविधान चलते हैं। इस संविधान का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि अगर कोई जम्मू-कश्मीर की लड़की इस राज्य के बाहर किसी अन्य राज्य में शादी करती है, तो उसकी जम्मू और कश्मीर से नागरिकता खो दी जाती है, और उसके बच्चों को किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती, जिससे सारे कश्मीरी कानून उनसे छीन लिए जाते हैं।

35A अनुच्छेद का कहीं भी जिक्र नहीं भारत के संविधान में 35A अनुच्छेद को जोड़ने का जिक्र कहीं भी नहीं मिलता है। ऐसे की संसद के कार्यकाल में यह बिल पेश किया गया के नहीं, या इस पर कोई बहस हुई हो, और कोई भी जानकारी कभी नहीं मिलती है, लेकिन इस अनुच्छेद को भारत के राष्ट्रपति इस प्रस्ताव को पारित करके भारत के संविधान में जोड़ा था, शायद इसमें राष्ट्रपति ने 370 धारा का प्रयोग किया हो।

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35A को हटाने की क्यों जरूरत पड़ी?

35A अनुच्छेद के कारण वहाँ रह रहे लोगों के साथ भेदभाव होने लगा था। जिनमें भारत से और राज्यों से रह रहे लोगों को वहाँ की नागरिकता देनी बिल्कुल बंद कर दी गई थी। वहाँ पर रहने वाले कम संख्या वाले लोगों पर अत्याचार बढ़ गए थे, जिसके कारण इस कानून को हटाने की आवश्यकता पड़ी। वहाँ रह रहे अल्पसंख्यक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को हटाने के लिए याचिका पेश की थी, जिसमें इस कानून को जल्द से जल्द रद्द करने की मांग की गई थी।

35A का हटाना: एक महत्वपूर्ण कदम

भारतीय संविधान के 35A अनुच्छेद को हटाना एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका प्रमुख उद्देश्य भारत के एकता और समानता को स्थापित करना है। इस अनुच्छेद के तहत विशेष धारा के तहत कुछ विशेष प्रावधान होते थे, जिनसे जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार प्राप्त थे, जबकि अन्य भारतीय नागरिकों को वही अधिकार नहीं मिलते थे। इससे जम्मू और कश्मीर के नागरिकों के साथ विभिन्न प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था।

35A को हटाने से अब सम्पूर्ण भारत में एक सामान्य नागरिकता का प्रावधान होगा, जिससे सभी नागरिक बराबरी का हक प्राप्त करेंगे। यह भारत के एक समृद्धि और सामाजिक अवसर की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जो सभी नागरिकों के लिए बेहतर जीवन की समर्पणा करता है।

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निष्कर्ष:

35A अनुच्छेद का हटाना एक महत्वपूर्ण कदम है जिससे भारत के नागरिकों के लिए बराबरी का हक प्राप्त होगा और भारत की एकता और समानता को स्थापित किया जा सकेगा। इसके माध्यम से समृद्धि और सामाजिक अवसरों का समर्थन किया जा रहा है, जो सभी भारतीय नागरिकों के लिए फायदेमंद होगा।

अनुच्छेद 35A की संवैधानिक वैधता के संबंध में विवाद

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35A, जो जम्मू-कश्मीर के विशेष स्थिति को नियमित करता है, ने देश के सामाजिक और सांस्कृतिक विचारधारा में विवाद का केंद्र बना दिया है। इस अनुच्छेद के मामले में कई विचारक और संगठनों के बीच विवाद जारी है, जो इसकी संवैधानिक वैधता के सवालों को उठा रहे हैं।

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अनुच्छेद 35A का प्रावधान

अनुच्छेद 35A संविधान के “परिशिष्ट” के रूप में प्रदर्शित होता है और यह विशेष विधान को जम्मू-कश्मीर में लागू करता है। इसके तहत, जम्मू-कश्मीर के निवासियों को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं और उनकी पहचान, भूमि, और रोजगार के अधिकार में प्रतिबंध लगाता है। यह अनुच्छेद इसके विचारधारा को संरक्षित रखने का उद्देश्य रखता है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

2014 में, एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें अनुच्छेद 35A को हटाने की मांग की गई, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके इसे संविधान में नहीं जोड़ा गया था।

केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार का प्रतिक्रिया

जबकि जम्मू-कश्मीर सरकार ने जवाबी हलफनामा दायर किया और याचिका खारिज करने की मांग की, लेकिन केंद्र सरकार ने नहीं किया उनकी याचिका स्वीकार नहीं की।

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अन्य मामले

2017 में, जम्मू-कश्मीर में दो कश्मीरी महिलाओं द्वारा जम्मू-कश्मीर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के लिए अनुच्छेद 35A के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक और मामला दायर किया गया।

सुप्रीम कोर्ट का प्रतिक्रिया

जुलाई 2017 में, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अनुच्छेद 35A मामले में एक हलफनामा दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार उत्सुक नहीं थी, इसके बजाय सरकार एक ‘बड़ी बहस’ चाहती है। इसके बाद, अदालत ने मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया और मामले के अंतिम निपटान के लिए एक और तारीख तय की, जिससे कश्मीर में हंगामा हुआ।

अनुच्छेद 35A की संवैधानिक वैधता के संबंध में चर्चा जम्मू-कश्मीर में विवादकारी स्थितियों को बढ़ावा देती है, और इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय देखने के लिए हम सभी देख रहे हैं। इस मुद्दे पर हो रहे विवाद ने भारतीय संविधान और विचारधारा के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकट प्रभाव डाला है और इसका निर्णय देने के लिए अदालत के आगे कई चुनौतियाँ हैं।

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अनुच्छेद 35A को लेकर हुआ बड़ा फैसला…. आर्टिकल 370 और 35A को जम्मू काश्मीर से हटा दिया गया

5 अगस्त सोमवार के दिन अनुच्छेद 35A को लेकर मोदी सरकार द्वारा बड़ा फैसला लिया गया। इस फैसले के अनुसार, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 35A को खत्म कर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप, जम्मू-कश्मीर में अब से भारतीय संविधान के अंतर्गत लागू होने वाले कानून ही प्रयुक्त होंगे। इसमें जम्मू-कश्मीर के लिए एक विशेष दर्जा को समाप्त कर दिया गया है जो 1947 में भारत के साथ हुए विवाद के कारण था।

जम्मू-कश्मीर का विभाजन

इस अनुच्छेद को निरस्त करते हुए, मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लद्दाख से पूरी तरह अलग कर दिया है। अब लद्दाख को एक अलग विधानसभा के रूप में घोषित किया गया है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य को दो संघ राज्य क्षेत्रों – जम्मू और कश्मीर डिवीजन और लद्दाख में बाँटने का प्रस्ताव पेश किया है।

विकास के दरवाज़े खुले

सूत्रों के अनुसार, इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के लोगों को विकास के लिए अधिक अवसर मिलेंगे। अब वहां पर अधिक निवेश किया जा सकता है, उद्योग की सम्भावनाएं बढ़ेंगी, नए शिक्षण संस्थान बने सकते हैं, और नौकरियों का अधिक स्रोत उत्पन्न होगा।

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राज्य की विधायिका में परिवर्तन

अब अनुच्छेद 370 के हटने से केंद्र को राज्य की किसी भी नीति या संविधानिक शक्तियों की शुरुआत के लिए राज्य की विधायिका की मंजूरी की आवश्यकता होगी। इससे राज्यपाल को, जिसे वर्तमान में ‘राज्य’ सरकार माना जाता है, राष्ट्रपति के द्वारा पास किए गए प्रस्ताव को स्थानांतरित करने की अनुमति मिलेगी।

समाज में परिवर्तन

इस अनुच्छेद के अनुसार, अब जम्मू-कश्मीर में भारतीय तिरंगा झंडा लहराया जा सकता है और भारतीय नागरिकों को यहाँ जमीन खरीदने और बेचने का अधिकार होगा। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर के लोग अब दूसरे राज्यों के नागरिकों के साथ शादी कर सकते हैं।

शांति और सुरक्षा के उपाय

किसी भी राष्ट्रीय चिन्ह के अपमान को जम्मू-कश्मीर में अपमानित नहीं माना जाता था, परंतु अब इस अपराध को कानून की श्रेणी में लाया जाएगा। इसके साथ ही, वहां पर राष्ट्रपति शासन के साथ-साथ प्रधानमंत्री शासन भी लागू किया जाएगा।

इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के साथ अब नई शुरुआत हो रही है, जिससे वहां के लोगों को नए और अधिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

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परिणाम स्वरूप: भारत देश में जम्मू और कश्मीर को एक और नाम जुड़ा

इस अनुच्छेद के निरस्त होते ही, भारत देश की केंद्र शासित श्रेणी में एक और नाम जुड़ गया है, जो कि जम्मू एंड कश्मीर है। आज, मोदी सरकार द्वारा यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया है, जिसका वर्णन इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में किया जाएगा। जिस अनुच्छेद की वजह से पिछले 72 सालों से देश का सबसे खूबसूरत हिस्सा देश से अलग था, आज वह भारत देश में ही जुड़ गया है। अनुच्छेद का विरोध तो सालों से चला आया है, परंतु किसी ने भी आज तक यह कदम नहीं उठाया है, जो कदम आज मोदी सरकार द्वारा उठाया गया है।

हर्षोल्लास का माहौल बना

इस अनुच्छेद के निरस्त होते ही भारत देश के नागरिकों के बीच हर्षोल्लास का माहौल बना हुआ है। साथ ही, जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी इस फैसले से बहुत बड़ी राहत मिली है, क्योंकि अब वह भारत में आकर अपना व्यवसाय बढ़ा सकते हैं और अतिरिक्त शिक्षा के लिए भी पहल कर सकते हैं। इस अनुच्छेद के निरस्त होने से भारत देश के साथ-साथ जम्मू एंड कश्मीर को भी बहुत से फायदे होंगे।

इस निरस्त अनुच्छेद का मात्र विरोध ही नहीं, बल्कि इसके साथ आने वाले सकारात्मक परिणामों का भी उल्लेख करना महत्वपूर्ण है। यह कदम भारत देश के और भी अधिक सामृद्धि और विकास की दिशा में है, और इससे जम्मू एंड कश्मीर के लोगों के लिए नये संभावनाओं का सफर आरंभ हो गया है।

यह निर्णय भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो जम्मू एंड कश्मीर को भारत के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में पुनर्मिलाया है। यह नया संदर्भ न केवल इस क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत सरकार के नेतृत्व में अद्वितीय और साहसी कदम उठाए जा रहे हैं, जो देश के विकास की दिशा में नए समायोजन का प्रतीक है।

इस तरह के सकारात्मक परिणामों के साथ, यह निरस्त अनुच्छेद भारतीय समाज के लिए एक नया दिन है, जो विकास और समृद्धि की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाता है।

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FAQ

1. सवाल: आर्टिकल 370 की वापसी का मतलब क्या है?

उत्तर: आर्टिकल 370 की वापसी, भारत सरकार के द्वारा जम्मू और कश्मीर के विशेष स्थान को समाप्त करके इसे अनुशासित राज्य के रूप में शामिल करने का मतलब है।

2. सवाल: SC ने किस आदेश को करारा झटका दिया?

उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 की वापसी को समर्थन देने का आदेश दिया, जिससे इसे समाप्त किया गया।

3. सवाल: कश्मीर के लोगों को कैसे फायदा होगा?

उत्तर: आर्टिकल 370 की वापसी से कश्मीर के लोग अब भारत में और अधिक विकास और शिक्षा के अवसरों का उपयोग कर सकते हैं।

4. सवाल: इस आदेश से क्या राजनीतिक परिणाम होंगे?

उत्तर: इस आदेश के साथ, भारत के संविधानिक संरचना में एकीकरण होगा और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो जाएगा, जिससे राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।

5. सवाल: आर्टिकल 370 की वापसी का इतिहास क्या है?

उत्तर: आर्टिकल 370 की वापसी का इतिहास भारतीय संघर्ष के हिस्से के रूप में है, जिसमें यह पहली बार हुआ कि कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त किया गया।

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