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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बिलकिस बानो मामले के ग्यारह दोषियों को पुनः जेल भेजने का निर्देश दिया है। इस निर्णय से गुजरात सरकार का पूर्व निर्णय उलट गया है। इस आदेश के बाद, बिलकिस बानो ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर संतोष जाहिर किया है, जिसमें उन्होंने और उनके परिवार के सात सदस्यों के साथ हुए गैंगरेप और हत्या के दोषियों को दी गई छूट को निरस्त कर दिया है। अब इन ग्यारह दोषियों को जल्द ही पुनः जेल भेजा जाएगा। बिलकिस बानो ने इस फैसले पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा है कि यह उनके लिए नया साल की तरह है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, बिलकिस बानो ने अपने वकील शोभा गुप्ता के माध्यम से कहा है कि उन्होंने खुशी के आंसू बहाए हैं और पहली बार डेढ़ साल में मुस्कुराई हैं। उन्होंने कहा है कि उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनके सीने से एक भारी पत्थर हट गया है और वह फिर से सांस ले सकती हैं।
उन्होंने यह भी कहा है कि न्याय इसी तरह होता है और उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय को धन्यवाद दिया है, जिन्होंने उन्हें, उनके बच्चों और सभी महिलाओं को समान न्याय की आशा और समर्थन प्रदान किया है।
बिलकिस बानो कौन हैं?
सन 2002 में गुजरात राज्य में हुए दंगों के दौरान एक भयावह घटना घटी। 27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आगजनी हुई, जिसमें अयोध्या से लौट रहे 59 यात्रियों की जान चली गई। इस घटना के परिणामस्वरूप गुजरात में व्यापक हिंसा और दंगे फैल गए। इसी हिंसा में बिलकिस बानो का परिवार भी फंस गया। गोधरा कांड के चार दिन बाद, 3 मार्च 2002 को, बिलकिस बानो और उनके परिवार पर एक अत्यंत दुखद और क्रूर हमला हुआ। उस समय 21 वर्षीय बिलकिस और उनकी छोटी बेटी सहित परिवार के 16 सदस्यों पर दंगाइयों ने हमला किया, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई।
क्या घटना घटी थी बिलकिस बानो के साथ?
वर्ष 2002 में, भारत के गुजरात राज्य में, दाहोद जिले के राधिकपुर गांव में बिलकिस बानो अपने परिवार के साथ रहती थीं। 27 फरवरी के बाद राज्य में उत्पन्न हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान, बिलकिस का परिवार गांव छोड़कर भाग रहा था। उस समय बिलकिस गर्भवती थीं और अपनी ढाई वर्ष की बेटी सालेहा के साथ, परिवार के 15 अन्य सदस्यों के साथ वे निकल पड़ी थीं।
3 मार्च को, जब वे चप्परवाड़ गांव पहुंचे और पन्निवेला गांव की ओर बढ़ रहे थे, उन्हें लगभग 20-30 लोगों के एक समूह ने घेर लिया। इस समूह ने उन पर घातक हथियारों से हमला किया, जिसमें बिलकिस की बेटी सहित सात लोग मारे गए। इस भयावह घटना में, बिलकिस के साथ कई बार दुराचार भी किया गया।
साढ़े तीन साल की मासूम को पत्थर पर पटक-पटकर मार डाला
एक अत्यंत दुखद घटना के दौरान, एक युवा बालिका का जीवन निर्ममता से छीन लिया गया। न्यायालय में, अधिवक्ता ने उस दर्दनाक परिस्थिति की चर्चा की जब एक अबोध बच्ची को कठोर चट्टानों पर फेंक कर उसकी जान ले ली गई। इस विषय पर विचार करते हुए, अधिवक्ता ने उल्लेख किया कि यह कोई सामान्य दुर्घटना नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित कृत्य था। अपराधी, पीड़िता का अनुसरण कर रहे थे और उनके ठिकाने की खोज कर रहे थे। उनका इरादा केवल रक्तपात करना था।
इस घटना में और भी क्रूरता की गई थी। जब पीड़िता पांच माह की गर्भवती थी, उस समय उन्हें कई बार बर्बरतापूर्ण ढंग से सामूहिक बलात्कार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, उनकी छोटी बेटी, जो महज साढ़े तीन वर्ष की थी, को निर्दयता से एक चट्टान पर पटक कर मार दिया गया। अधिवक्ता ने यह भी बताया कि पीड़िता ने हमलावरों से दया की भीख मांगी, परंतु उन्होंने न तो उन पर और न ही उनके परिवार पर कोई दया दिखाई।
परिवार पर हुई दरिंदगी और बर्बरता”
यह घटना अत्यंत निंदनीय और भयावह है, जिसमें एक परिवार के सदस्यों के साथ अकथनीय अत्याचार और क्रूरता की गई। इसमें एक महिला की माँ और चचेरी बहन के साथ जघन्य अपराध किया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गई। उनके नाबालिग भाई-बहनों, चचेरी बहन के दो दिन के बच्चे, चाची-चाची, और अन्य चचेरे भाई-बहनों का भी नृशंस तरीके से अंत किया गया।
इस घटना में वकील शोभा के अनुसार, बरामद किए गए शवों के सिर और छाती को बुरी तरह क्षत-विक्षत पाया गया। उन्होंने यह भी बताया कि हालांकि 14 लोगों की मृत्यु हुई, केवल सात शव ही प्राप्त हो सके, क्योंकि जहाँ यह घटना घटी वह स्थान सुरक्षित नहीं था।
“बिलकिस की दर्दनाक यात्रा: हमले के बाद बेहोशी और संघर्ष”
इस भीषण हमले में, जहां बिलकिस के परिवार के कई सदस्य नहीं बच सके, वहीं बिलकिस, उनके परिवार के एक पुरुष सदस्य और एक तीन वर्षीय बच्चा इस त्रासदी से बच गए। घटना के बाद, बिलकिस कई घंटे तक बेहोश रहीं। होश में आने पर, उन्होंने एक आदिवासी महिला से कपड़े उधार लिए। इसके बाद, एक होम गार्ड ने उन्हें लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन पर पहुंचाया, जहां उन्होंने हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई के अनुसार, गोरी ने शिकायत के महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया और उसे तोड़-मरोड़कर पेश किया।
गोधरा राहत शिविर में पहुंचने के बाद, बिलकिस को चिकित्सा जांच के लिए एक सरकारी अस्पताल ले जाया गया। इसके बाद उनका मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां से सीबीआई जांच के आदेश दिए गए। जनवरी 2008 में, एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को दुष्कर्म, हत्या, और गैर कानूनी रूप से इकट्ठा होने की धाराओं में दोषी पाया। इस मामले में सजा काट रहे 11 दोषियों को 15 अगस्त 2023 को रिहा कर दिया गया, जिसका सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया गया।
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आत्मसमर्पण की अंतिम तिथि 21 जनवरी नजदीक आ रही है
बिलकिस बानो मामले के अपराधियों को आत्मसमर्पण करने के लिए दी गई समयावधि 21 जनवरी को समाप्त हो रही है। इसमें गोविंद नाई, प्रदीप मोरधिया, बिपिन चंद्र जोशी, रमेश चांदना, और मितेश भट्ट सहित पांच अभियुक्त शामिल हैं। नाई ने अपनी याचिका में बताया कि वह एक वृद्ध व्यक्ति है, जो अस्थमा से पीड़ित है और हाल ही में उनका ऑपरेशन हुआ था। उन्होंने बवासीर के लिए आवश्यक एक और ऑपरेशन का भी उल्लेख किया, साथ ही अपने 88 वर्षीय पिता के स्वास्थ्य की चर्चा की।
प्रत्येक आरोपी के तर्क
रमेश चांदना ने अपनी याचिका में कहा कि वह अपनी फसलों की देखभाल में व्यस्त हैं और वह परिवार में इकलौते पुरुष सदस्य हैं। उन्होंने अपने युवा बेटे की शादी की जिम्मेदारियों का भी जिक्र किया। प्रदीप मोरधिया ने बताया कि उन्हें फेफड़े की सर्जरी के बाद नियमित चिकित्सीय परामर्श की आवश्यकता है। मितेश भट्ट ने अपनी सर्दियों की फसल की कटाई के लिए समय मांगा, जबकि जोशी ने हाल ही में हुई पैर की सर्जरी का हवाला देते हुए राहत मांगी है।
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